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शुभ प्रभात दोस्तों ,
आपका दिन सकारात्मक रहे।
दोस्तों क्या आपके साथ भी ऐसा होता है, कि आपने कुछ करने की ठानी ओर वो कुछ दिन तो आपने पुरे मन से किया , आपने पूरी ताकत से किया और लगा की बस अब तो हो ही गया , लेकिन ३-४ दिन बाद सब पहले जैसा । वो काम जो मुझे करना था और जो करना मेरे लिए ठीक भी था नहीं हो पा रहा ।
अब क्या करे , क्योकि काम तो जरुरी है और सही भी है , लेकिन हो नई पा रहा या यूँ कहे कि हमसे करा नहीं जारा ।
अब दोस्तों सवाल ये है की क्यों ??
क्यों हमसे वो काम करा नहीं जा रहा जॊ हमें करना चाइये और जो करना हमारे / मेरे लिए ठीक भी है ।
आपके साथ भी ऐसा होता होगा ।
इसको अगर हम आसान भाषा मे समझे तो बहुत ही आसान है -
उत्तर है -- मेरे अन्दर का धैर्य , सबर और मेरी सोच ।
हमें रिजल्ट बड़ी जल्दी चाइये होते है और क्योकि रिजल्ट हमेसा जल्दी नहीं मिल जाते और इस कारण हम उस काम को करना छोड़ देते हैं । या यू कहे की उस काम को करने का उत्साह हममें बाकि नहीं रहता ।
क्यों उत्साह कम हो जाता है क्योंकि परिणाम हमारे मनमुताबिक नहीं आते और जल्दी नहीं आते । और इसलये वो काम जो मुझे करना चाइये था और जो करना मेरे लिए ठीक भी था वो नही होता ।
उदहारण के लिए --
मान लीजिये आप बहुत मोटे है । और आपने इस मोटापे से आपको छुटकारा चहिये जो पता नही कब से आपके साथ है । अब आपको ये पता है की मोटापे से छुटकारा चहिये । क्योंकि मोटापा सेहत के लिए सही नहीं है । और इससे छुटकारा चाइये तो आपको सुबह सैर पे जाना होगा , आपको दौड़ लगानी होगी । अब आप ये तो समझ गए की मोटापा बुरा है और इससे छुटकारा चाइये और इसके लिए आपको दौड़ना होगा । और आप इसके लिए तैयार भी है । और अब तो बस मोटापा गायब हो जायगा । और आप जोश से भरे हुए रोज सुबह दौड़ पे जाने लगे लेकिन ५-६ दिन लगातार जाने के बाद एहसास हुआ की ये सब आपने बस का नहीं है ,
सब मोह माया है।
हाहाहाहाहाहाहाह ।
ऐसा ही होता है ना आपके साथ भी। कभी सोचा है क्यों होता है ऐसा ,
इस इसलिए होता है क्योंकि हमारे अन्दर साकारात्मक विचारो की कमी होती है।
हमार्री आदत होती है हर चीज में कमी निकालना।
अरे यार पूरा हफ्ते दौड़ा और थोड़ा सा ही वजन कम हुआ , मुझे तो ३ -४ किलो कम करना था । नहीं हो पारा छोड़ो यार ।
और हम वो काम छोड़ देते है। क्योंकि एक तो परिणाम वो नहीं आये जो चाइये थे और दूसरा जल्दी नहीं आये।
हम ये क्यों नहीं सोचते की मै कम से कम एक हफ्ता तो दौड़ा। आजतक तो दौड़ ही नही रहा था। अब कमसे कम १ हफ्ता तो गया।
हमें सकारात्मक सोच की जरुरत है।
और खुश होने के बजाये आपने आप को शाबासी देने के बजाये हम आपने आप को कोसते है।
अपनी सोच को नहीं कोसते है। आपको जरुरत है सकारात्मक सोच की।
आप १ हफ्ते दौड़ने गए।
क्या ये बदलाव नहीं। क्या ये सफलता नहीं। माना सफलता छोटी है लेकिन बड़ी की जा सकती है।
मनोबल यही से बढ़ता है।
आपको किसी दूसरे की जरूरत नहीं है। की वो आये और आपका मनोबल बढ़ाये। वो क्यों बढ़ाये भाई उससे क्या मिलना है, आपका मनोबल बड़ा के।
आपको खुद आपना मनोबल बढ़ाना है। आपको खुद अपनी सोच को सकारात्मक बनाना है।
तभी आप सफलताओ की सीढ़ी चढ़ पाओगे। आपकी सफलता आपके अंदर है बहार नहीं है।
आपको बस उस सफलता को बहार लाना है। और इसके लिए आपको अपनी सोच को सकारात्मक करना होगा। दरअसल हममे इतनी ज्यादा नाराकत्म विचार भरे है सकारात्मक विचारो के लिए जगह नहीं है।
इसलिए आपने आंदर के नकारात्मक विचारो को फेकिये और सकारात्मक विचारो को पकड़िये।
तभी आपने एनर्जी आयगी काम करने की। और एक बार आप सकारात्मक हो गए तो आप कोई भी काम बड़ी आसानी से कर लोगे। क्योंकि एक तो आपमें एनर्जी की कोई कमी नहीं होगी और दूसरे आप को कोई काम कठिन नहीं लगेगा।
और फिर आप कोई भी कर जाओगे , सिर्फ एक ही नहीं आप जिस काम में हाथ डालोगे वो हो जायगा।
लेकिन पहले आपको सकारात्मक बनना होगा।
सकारात्मक विचारो को अपनाना होगा।
और फिर आपको खुद बदलाव दिखेगा।
छोटे लगने लक्ष्य छोटे नही होते , वो बड़े लक्ष्य को हासिल करने की पहली सीढ़ी है।
इसलिए छोटी छोटी लगने वाली ये सीढिया जब भी आप चढ़ते हो अपने आप को शाबासी दिया करो।
अपने आप को खुश रखो। कोई लक्ष्य छोटा बड़ा नहीं होता। उसमे लगने वाली ताकत बराबर होती है।
इसलिए अपने आप से प्यार करो आपने लक्ष्य से प्यार करो सकारात्मक रहो।
सकारात्मक सोच का व्यक्ति हमेसा खुश रहता है एनर्जी से भरपूर रहता है , और उसका मनोबल हमेसा चट्टान की तरह मजबूत रहता है।
इसलिए ऑलवेज बी पॉजिटिव।
अपनी राय इस ब्लॉग के बारे में जरूर दे।
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आपका दिन सकारात्मक रहे।
दोस्तों क्या आपके साथ भी ऐसा होता है, कि आपने कुछ करने की ठानी ओर वो कुछ दिन तो आपने पुरे मन से किया , आपने पूरी ताकत से किया और लगा की बस अब तो हो ही गया , लेकिन ३-४ दिन बाद सब पहले जैसा । वो काम जो मुझे करना था और जो करना मेरे लिए ठीक भी था नहीं हो पा रहा ।
अब क्या करे , क्योकि काम तो जरुरी है और सही भी है , लेकिन हो नई पा रहा या यूँ कहे कि हमसे करा नहीं जारा ।
अब दोस्तों सवाल ये है की क्यों ??
क्यों हमसे वो काम करा नहीं जा रहा जॊ हमें करना चाइये और जो करना हमारे / मेरे लिए ठीक भी है ।
आपके साथ भी ऐसा होता होगा ।
इसको अगर हम आसान भाषा मे समझे तो बहुत ही आसान है -
उत्तर है -- मेरे अन्दर का धैर्य , सबर और मेरी सोच ।
हमें रिजल्ट बड़ी जल्दी चाइये होते है और क्योकि रिजल्ट हमेसा जल्दी नहीं मिल जाते और इस कारण हम उस काम को करना छोड़ देते हैं । या यू कहे की उस काम को करने का उत्साह हममें बाकि नहीं रहता ।
क्यों उत्साह कम हो जाता है क्योंकि परिणाम हमारे मनमुताबिक नहीं आते और जल्दी नहीं आते । और इसलये वो काम जो मुझे करना चाइये था और जो करना मेरे लिए ठीक भी था वो नही होता ।
उदहारण के लिए --
मान लीजिये आप बहुत मोटे है । और आपने इस मोटापे से आपको छुटकारा चहिये जो पता नही कब से आपके साथ है । अब आपको ये पता है की मोटापे से छुटकारा चहिये । क्योंकि मोटापा सेहत के लिए सही नहीं है । और इससे छुटकारा चाइये तो आपको सुबह सैर पे जाना होगा , आपको दौड़ लगानी होगी । अब आप ये तो समझ गए की मोटापा बुरा है और इससे छुटकारा चाइये और इसके लिए आपको दौड़ना होगा । और आप इसके लिए तैयार भी है । और अब तो बस मोटापा गायब हो जायगा । और आप जोश से भरे हुए रोज सुबह दौड़ पे जाने लगे लेकिन ५-६ दिन लगातार जाने के बाद एहसास हुआ की ये सब आपने बस का नहीं है ,
सब मोह माया है।
हाहाहाहाहाहाहाह ।
ऐसा ही होता है ना आपके साथ भी। कभी सोचा है क्यों होता है ऐसा ,
इस इसलिए होता है क्योंकि हमारे अन्दर साकारात्मक विचारो की कमी होती है।
हमार्री आदत होती है हर चीज में कमी निकालना।
अरे यार पूरा हफ्ते दौड़ा और थोड़ा सा ही वजन कम हुआ , मुझे तो ३ -४ किलो कम करना था । नहीं हो पारा छोड़ो यार ।
और हम वो काम छोड़ देते है। क्योंकि एक तो परिणाम वो नहीं आये जो चाइये थे और दूसरा जल्दी नहीं आये।
हम ये क्यों नहीं सोचते की मै कम से कम एक हफ्ता तो दौड़ा। आजतक तो दौड़ ही नही रहा था। अब कमसे कम १ हफ्ता तो गया।
हमें सकारात्मक सोच की जरुरत है।
बजाय ये सोचने के की जो काम २ साल से नहि हो था वो अब हो रहा है। हम ये सोच के दुखी है की में पूरा महीना नहीं दौड़ा।
अरे कम से कम हफ्ताभर तो गया दौड़ने। आजतक तो जा ही नहीं रहा था।और खुश होने के बजाये आपने आप को शाबासी देने के बजाये हम आपने आप को कोसते है।
अपनी सोच को नहीं कोसते है। आपको जरुरत है सकारात्मक सोच की।
आप १ हफ्ते दौड़ने गए।
क्या ये बदलाव नहीं। क्या ये सफलता नहीं। माना सफलता छोटी है लेकिन बड़ी की जा सकती है।
मनोबल यही से बढ़ता है।
आपको किसी दूसरे की जरूरत नहीं है। की वो आये और आपका मनोबल बढ़ाये। वो क्यों बढ़ाये भाई उससे क्या मिलना है, आपका मनोबल बड़ा के।
आपको खुद आपना मनोबल बढ़ाना है। आपको खुद अपनी सोच को सकारात्मक बनाना है।
तभी आप सफलताओ की सीढ़ी चढ़ पाओगे। आपकी सफलता आपके अंदर है बहार नहीं है।
आपको बस उस सफलता को बहार लाना है। और इसके लिए आपको अपनी सोच को सकारात्मक करना होगा। दरअसल हममे इतनी ज्यादा नाराकत्म विचार भरे है सकारात्मक विचारो के लिए जगह नहीं है।
इसलिए आपने आंदर के नकारात्मक विचारो को फेकिये और सकारात्मक विचारो को पकड़िये।
तभी आपने एनर्जी आयगी काम करने की। और एक बार आप सकारात्मक हो गए तो आप कोई भी काम बड़ी आसानी से कर लोगे। क्योंकि एक तो आपमें एनर्जी की कोई कमी नहीं होगी और दूसरे आप को कोई काम कठिन नहीं लगेगा।
और फिर आप कोई भी कर जाओगे , सिर्फ एक ही नहीं आप जिस काम में हाथ डालोगे वो हो जायगा।
लेकिन पहले आपको सकारात्मक बनना होगा।
सकारात्मक विचारो को अपनाना होगा।
और फिर आपको खुद बदलाव दिखेगा।
छोटे लगने लक्ष्य छोटे नही होते , वो बड़े लक्ष्य को हासिल करने की पहली सीढ़ी है।
इसलिए छोटी छोटी लगने वाली ये सीढिया जब भी आप चढ़ते हो अपने आप को शाबासी दिया करो।
अपने आप को खुश रखो। कोई लक्ष्य छोटा बड़ा नहीं होता। उसमे लगने वाली ताकत बराबर होती है।
इसलिए अपने आप से प्यार करो आपने लक्ष्य से प्यार करो सकारात्मक रहो।
सकारात्मक सोच का व्यक्ति हमेसा खुश रहता है एनर्जी से भरपूर रहता है , और उसका मनोबल हमेसा चट्टान की तरह मजबूत रहता है।
इसलिए ऑलवेज बी पॉजिटिव।
अपनी राय इस ब्लॉग के बारे में जरूर दे।
Yes. ..
ReplyDeleteAlways be positive